कंही वक़्त बगावत न
कर बैठे , ये हम से शिकायत न कर बैठे l
रोको इस अविनाशी
क्षण मात्र को, ये सवाल जबाब न कर बठे ll
कंही वक़्त बगावत न कर बैठे
..............................2
--००--
यंहा निमेश एक में
मित्र है , होते वक़्त के दामन में नित्य छिद्र है l
मा के आईने से मेने
देखा है ,यंहा फिरते जगत में बनकर सब प्रेत है
यंहा प्रीति बेर
विकने लगे ,और तट सरजू के दंगे है l
आस्था रह गई आकेली
, और मलिन गंगा के चर्चे है ll
जन्हा कुटिल योजनाओ
का , मंदिर मज्जिद पर फहरा है l
दूल्हा कोइ नही पर
, हर सर पर सजा एक सेहरा है ll
अब अंबर को जमी तक
खीचा है , और चाँद पर होता रोज एक मेला है l
यंहा होता हर
चौराये पर एक नया लंगर है l
फिर भी गरीब सोता
भूखा घर के अन्दर है ll
बदल डालो अपनी
प्राणली को, कंही प्रणय अंत न कर बैठे l
रोको इस अविनाशी
क्षण मात्र को, कंही वक़्त बगावत न कर बैठे ll.....2
--००—
न बनाओ एसे आसरे ,
जन्हा ऊँचे हो हमारे आशियाने l
ये सने सने गिर
जायेंगे हम मुसीबतों में गिर जायेंगे ll
रोक सको तोह रोक लो
, इस कण कण क्षण की माया को
अन्यथा ये आगे अन्य
राह में , आगे न निकल बैठे l
हमे छोड़ अपनी होड़
में ,ये आगे न निकल बैठे ll
समय तोह सीमाये
लाँघ गया संयम शिविर न छोड़ बैठे l
रोको इस अविनाशी
क्षण मात्र को, कंही वक़्त बगावत न कर बैठे ll.......2
--००-
क्या होगा अगर वक़्त बगावत कर बैठे
कंही बाघ दहाड़ना
भूल गया , और मन पंक्षी के मीत गया l
वृक्ष स्वार्थ न
समझ बैठे , वायु अद्रोध न कर बैठे ll
कोकिल जब गाना भूल
गये तोह मयूरा सावन भूल गया l
ये नियति नियत न हो
जाये, क्षण ताबूत में न सो जाये ll
इससे पहले हम जाग
जाये, सोते समय को साथ लाये l
जीवन को
सुखमय,सुखद, और सफल बनाने को
अओ हम सब मिल कर
आगे आये ll .........2
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