Tuesday 15 September 2015

SAVE THE TREE

कभी आपने सोचा है वृक्षों ने हमे क्या दिया चलिये ये सोचना थोडा कठिन होगा ये सोचिये हमने वृक्षों से लिया क्या ?
शायद सोचेंगे तोह कल्पनाओ में खो जायेंगे हमे हर उस पल को याद करना होगा जो वृक्षों से जुडा रहा एक प्रतिउत्तर जो सामान्यता प्राप्त होगा  वह यह की वृक्ष न होते तोह शायद हम भी न होते हमारे ब्रमांड में  अपने गृह पर जीवन भी सफल न होता इसको वैज्ञानिक भाषा में समझे तोह हम पर्याप्त मात्रा में ओक्सीज़न प्राप्त नही कर पाते और यह गृह भी अन्य ग्रहों की तरफ मनविये जीवन से आछुता होता l
एक अन्य भाषा में समझे तोह हम और वृक्ष दोनों सगे भाई की तरह ज्ञात होते है इनकी उत्पत्ति में उपयोग होने वाले तत्व और हमारे तत्वों  में भिन्ता नही है
पर यह वह एकतरफ़ा रिश्ता है जिसे एक द्वारा निभाया गया तोह दुसरे ने जब याद किया जब उसे आवश्यकता महसूस हुइ
वृक्षों का इतिहास मानव सभ्यता से भी पूर्व का है वृक्षों में पनाह लेकर खड़ा हुआ मानव आज कितना विकसित हो गया हम केवल अनुमान लगा सकते है l
पर ये खामोश परोपकारी आज भी जरुरतमंदो को पनाह देना नही भुला मनविये सभ्यता ने अपना विकास किया और अपने रहने अनुकूल योग्य वातावरण निर्मित किया पर वृक्ष आज भी लाखो प्रकार की पक्षी प्रजाति और जानवरों के पनाहगार बने हुए है, जिसने अपने जीवन से लेकर मरते दम तक इंसान का साथ दिया और इंसानियत के लिए अपना सर्वस्य नौचावर कर दिया पर  इन्सान ने अपने जीवन से लेकर मरने तक उसे पानी तक न दिया
क्या इतनी निष्टुर हो गई मनवियता क्या सच में हम स्वार्थी हो गये ? जी हाँ
आपको याद न हो चलिए में याद दिलाता हूँ
जब जन्म हुआ तब पलना बनकर
चलना सिखाया इसने हमे तीन पाये की गाडी बनकर
लिखना सिखाया हमे पेन्सिल बनकर
तोह भूके को भोजन दिया फल बनकर
थके राहगीर को छांव दी इसने पत्तिया बनकर
ये आस्था में जिन्दा रहा फुल बनकर
इसने डूबते को बचाया नांव बनकर
ये बुडापे में सहारा बना लाठी बनकर
इसने इंसान को नियति के अनुकूल जिन्दा रखा खुद जलकर
वो वृक्ष ही थे जिन्होंने इन्सान को मुक्ति दी खुद राख बनकर
यह तथ्य हमारे स्वार्थ को और हवा देंगे
आज वृक्ष जिन्दा है खुद के भरोसे और इंसान ने अपने ताकतों को बड़ा लिया  आज इंसानी हुकूमत की आर्थिक व्यवस्था को बिना वृक्षों के योगदान से नही देखा जा सकता हमारे प्रतिदिन की गतिविधि वृक्षों से प्रभावित है हम जिस प्रकार बिना जल के जीवित नही रह सकते उसी प्रकार बिना वृक्षों के जीना भी उतना ही नामुमकिन है वृक्षों की छालो से बनने वाली औषदी हो या घर – वाहर की सजावट आज वृक्षों ने अपनी खुद की सुन्दरता को वेरंग कर इंसानी हुकूमत को रंगीन और सौन्दर्यमय बना दिया ,
क्या आपने कभी इनके हाल को जानने का प्रयास किया शायद नही और में अपने एक प्रयास का अनुभव सांचा करना चाहूँगा कोशिश करूँगा अपनी गिलानी को व्यान कर संकुं
फुर्सत के कुछ लम्हों में ,निकल कर समय के चंगुल से
व्यस्था को छोड़ अकेले अपने घर आया हूँ घुमने
वीरान और खामोश जंगल में
इन्हे देख कुछ अजीव ही अनुभव प्राप्त होता है
ये खामोश है पर कुछ कहना चाहते है
हमे रहने दो अकेला ये संकेत देना चाहते है
सांकेतिक भाषा में वृक्ष हमसे अपनी दशा का वर्णन करते है
बंद करो ये महासंग्राम अब हम हारे है
तुम हत्यारों के आगे हम निहत्थे और विचारे है
दूर कर दिया तुमने हमे आपने आप से
अब कुछ तोह शर्म करो अपने आप से
हमारे चारो और बिछी हरियाले और हमारी उचाई तुम्हे रास न आई
ये विडंबना है तुम्हारी बनाई बहुमंजिला इमारते हमे रास न आई
अब हरी भरी नही घूमिल है प्रक्रति तुम्हारी यंहा क्या लेने आये हो
क्या घर में लगा बगीचा भी चुभने लगा जो यंहा लगाने आये हो
वृक्षों की इस प्रताड़ना और क्रोध को सहना गिलानी का घूंट पिजाने जैसा है पर जो वृक्षों ने सहा उसको गिनना भी बहुत मुश्किल है l
हम बकाई में उन्हें उपयोग करते रहे और हमारी उप्योगियता की हद यंहा तक पहुँच गई की वह अब संख्याओ में कम होते जा रहे है आज विश्व की 7.50 अरव जनसंख्या
जिस तरफ वृक्षों का शौषण कर रही है निचित ही वह अपनी खो बैठेंगे वृक्षों की उप्योगियता से वृक्षों को परेशानी नही अलवत्ता उन्हें पुनह जीवन न मिल पाने का अफ़सोस है हमारी आवश्यकता अनुसार हम वृक्षों का उपयोग करे यह जायज है पर उतनी ही मात्रा में वृक्षों को पुनह खड़ा करे यह उतरदायित्व भी हमारा ही है आपका यह संख्की को जानकर हैरानी होगी विश्व में 7.5 अरव लोगो ने मिल कर 15 अरव वृक्षों को कटा है यह प्रतिवर्ष का आंकड़ा है आंकड़ो से स्पस्ट होता है प्रति व्यक्ति 2 वृक्षों का कटा गया जब की इन्हे इतनी संख्या में पुनह नही लगाया गया आज 12000 वर्षो में वृक्षों की संख्या 46 % की कमी आई है यह अवश्य ही चिंता का विषय है
इतने गहन चिंता में हम विकसित होने की गाथा गाने से बंद नही होते “क्या करेंगे वो गीत को गा कर जिसमे सरगम ही न हो “
में वृक्षों के बलिदान को विकसित होने का हथियार मानता हूँ , हमे वृक्षों के बारे में पुनह विचार की आवश्यकता है यह आवश्यकता हमारी नही यह मजबूरी है इस प्रकृति के संतुलन के लिए भी हमे वृक्षों का साथ देना होगा वृक्षों के लिए न सही अपने लिए क्योकि असंतुलित नियति में जीवन को खोज पाना मुश्किल होगा अगर मेरे इस लेख को पड कर कोइ एक वृक्ष को भी लगाता है तोह में समझूंगा मेरा मकसद पूरा हुआ 


 BY- ANURAG SHARMA (प्राक्रतिक )
SUB ENGINEER 
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