Saturday 31 October 2015

जलवायु परिवर्तन "GROWING TREES SAVE US"

में विचलित हो उठता हूँ जब यह खबर प्राप्त होती है की “किसी किसान ने अपनी जमीन में हुए फसल के नुकसान के कारण आत्महत्या की “ कितना दुखद होता है यह सह जाना की हमारा एक अन्यदाता अब नही रहा पर इन सब से हठ कर जरा विचार कीजिये क्या कारण हुए होंगे सामान्य व्यव्हार में यह व्यक्तिगत परिस्थिति ज्ञात होगी पर एसा नही है यह हरित क्रांति के अंत का प्रारंभ है l
प्रतिवर्ष हो रहे निरारंतर परिवर्तन और उन परिवर्तनों में पिसती सरकार ये नुक्सान केवल किसान का नही सरकारे भी मुआवजा बांटते –बांटते अपने कोषालय को खाली करती जा रही है l
विकास के अन्य कार्यो में लगने वाली पूंची मुआवजे के रूप में खर्च की जा रही है l किसान पर हो रहे इस प्रभाव को कोइ भी सरकार नज़रन्दाज नही कर सकती आखिर देश की 70% वोट बैंक का सवाल है यही किसान सरकार बनाते है यही गिरा भी सकते है अत: कहा जा सकता है किसानो को होने वाले नुकसान की भरपाई करना सरकार की मजबूरी है l पर यह तोह बस ऊंट के मुह में जीरा है किसान को इस नुक्सान से कुछ के बारबार ही मुआवजा प्राप्त हो पता है l हमे मुआवजा बाँटने के आलावा कुछ आवश्यक जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है l हमे फसल चक्र को अपनाना होगा खेती के नविन संसाधनों को विकसित करने की आवश्यकता है l तकनिकी मार्गदर्शन को बढावा देना होगा हम एक कृषि प्रधान देश है हमारी अथेव्यवस्था खेती पर बहुत हद तक निर्भर है l हमे इसका Commercialize व्यावसायीकरण  करना और बड़े पूछीपतियों को इसमे निवेश करने की और पहल करना चाहिए l केवल वर्षा पर निर्भर रहने वाली फसल या खेतो तक जल की पूर्ति की आवश्यकता है एसी योजनाओ में लगने वाला पैसा शायद मुआवजे से कम होगा l जीहाँ ये फसल की चिंता एक व्यपक चिंतन है में चिंतित फसल के एक बार नष्ट हो जाने से नही बल्कि लगातार हो रहे नुकसान से चिंतित हूँ जिसका एक मात्र कारण मुझे नज़र आता है वह है जलवायु परिवर्तन climate change ये इन हादसों का सबसे बड़ा कारण है आज भारत ही नही समूचा विश्व इस समस्या को विश्व की अन्तरराष्टीय समस्या मान चूका है वैज्ञानिक हमे लगातार आगाह कर रहे है और इस समस्या ने अपने पैर पसारना भी शुरू कर दिये  जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा है। अगर कुछ वैज्ञानिकों  मानें तो यह ग्लोबल वॉर्मिंग एक प्रकृतिजन्य प्रक्रिया का हिस्सा है, जो एक निश्चित समय चक्र पर लगातार होती है।
इसके कारण पृथ्वी पर रहने वाली सभी प्रजातियों को लगातार परिवर्तनशील होना पड़ता है। प्राकृतिक रूप से होने वाली ये प्रक्रियाएँ प्रजातियों के क्रमिक विकास के लिए फायदेमंद होती है। 
हालाँकि यह सिद्धांत पूरी तरह मान्य नहीं है और देखा जाए तो मानव गतिविधियों के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों में तेजी से जलवायु परिवर्तन तेज हो गया है। अनेक पर्यावरणविदों वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हो रहा जलवायु परिवर्तन निकट भविष्य में कई प्रजातियों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण हो सकता है। और इसके कुछ उदाहरणों में जैसे
·         उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित कनाडा के बर्फीले मैदानों से ध्रुवीय भालू गायब होना
·         दक्षिण अमेरिका में समुद्री कछुएओ की वंशवृद्धि में गिरावट
·         चीन के विशाल पांडा का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है
·         जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की आवृत्ति में वृद्धि के साथ-साथ जंगल में आग (बुशफायर) का भी लगातार खतरा बना हुआ है।
·         भारत में विशेषज्ञों का अनुमान है कि बाघों के सबसे बड़े क्षेत्र सुंदरवन डेल्टा में लगातार मैंग्रोव के जंगल गायब होते जा रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव क्षेत्र को समुद्र के स्तर में वृद्धि का भयानक परिणाम अपनी गोद में पल रही कई अनमोल प्रजातियों की जान से चुकाना पड़ रहा है। 
वंही निरंतर इस तरह की खबरे और असर दिखने भी लगा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं और रेगिस्तान पसरते जा रहे हैं. कहीं असामान्य बारिश हो रही है तो कहीं असमय ओले पड़ रहे हैं. कहीं सूखा है तो कहीं नमी कम नहीं हो रही है कंही भूकंप तोह अन्य प्राकर्तिक आपदाओ की घटनाओ में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे मनिविये जीवन अभूत पूर्ण क्षति होती जा रही है हमारे वर्षाकाल और सर्दियों  के दिन में गिरावट आई है और तापमान में लगातार वृद्धि आज वर्ष के 365 दिनों में से औसतन 220 दिन तापमान गर्म बना रहता है प्रथ्वी का तापमान यंहा विश्व में औसतन 15 c तक आ पहुंचा वाही भारत में नुयुनतम 18 c से 25 c तापमान वर्ष वर रहता है वैज्ञानिक मतअनुसार जिस प्रकार हम कार्बन व् अप्रम्परागित उर्जा का उपयोग कर रहे है प्रति 100 वर्ष में 6 c तापमान की वृद्धि संभव है अत; इसप्रकार शायद यह सभ्यता कुछ 10 शाताव्धियो की ही मेहमान है l मानव प्रजाति के भी खतरे में आने की शुरुआत हो चुकी है। बेतहाशा आबादी और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन ग्लोबल वॉर्मिंग को तेज कर रहा है। प्रकृति की हर प्रजाति कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ी है, एक प्रजाति का सर्वनाश दूसरी प्रजाति पर आसन्न खतरे को अधिक विकट बनाता है। घटते संसाधनों और बढ़ती माँग ने इस समस्या को और भी जटिल बना दिया है, जिसे जल्दी सुलझाना पूरी पृथ्वी के हित में होगा। अन्यथा हम भी उन अन्य ग्रहों की श्रेणी में 10 शाताव्धि बाद गिने जायेंगे जन्हा जीवन की सम्भावनाये शून्य है हमारे लिए यह क्रमिक विकास की एक प्रक्रिया होगी हम एक तरह से कोइ सांफ सीडी का खेल खेल रहे है जैसे ही हम विकास (लक्ष्य) के नजदीक पहुंचेंगे हम फिर प्रारंभ पर बैठेंगे जीवन नष्ठ होगा पर सम्भावनाये नही l
हमे नविन उर्चा का सर्जन की आवश्यकता है अप्रम्पराह्गत उर्चा के संसाधन हमे ही निगलते जा रहे है प्रराम्परागत उर्चा का उत्सजन हमारी अवश्यक ही नही मजबूरी है सौर्य उर्चा –पवन उर्चा –बोइगेस जैसे संसाधनों में सम्भानाये तलाशना होगीं हमे CC  COUL & CORBEN का उपयोग नुन्य्तम करना होगा नही तोह यह हमारी CC (कम्पलीशन सर्टिफिकेट ) जारी कर देंगे C&C जितना कम होगा तापमान में संतुलन उतना बेहतर होगा l वातावरण मनविये क्रिया कलापों के कारण  कार्बन का प्रतिशत बड़ा है जिसको संतुलित करने का एक मात्र मंत्र है वृक्षारोपण जी हाँ केवल वृक्ष ही एक मात्र वह शिव है जो इस जहर को अवशोषित कर सकते है और अमृत रूप (ओक्स्सिज़न)में बदल सकते है l मेरा मत है विश्व की 7 अरव जनसँख्या मिल कर प्रतिवर्ष अपने जन्म दिवस पर  1 वृक्ष लगाती है तोह यह परंपरा हमे बहुत आगे तक लेकर जाएगी एसा करने वाले कुछ राज्य और देशो की में सराहना करता हूँ पर इस कैम्पेन को “GROWING TREES SAVE US “ के नाम से शुरू करना चाहिये हमे प्रत्येक शासकीय परिसर –आवासीय भवन –पार्क बंजर भूमि –पहाड़ व् नदी नालो का उपयोग इसी कैम्पिंन के लिए करना चाहिये l
नोट :-आप अपना मत और सुचाव मुझे मेल कर सकते है 
BY :-ANURAG SHARMA 
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Sunday 20 September 2015

THE FIRE OF RESERVATION

आज शिक्षक वर्ग में एक असंतोष की लहर है , में नही जनता वह आचार्य चाणक्या के अनुयायी है या गुरु द्रौण के भगत हाँ मेने इतना तोह जाना है यह वाही शिक्षक है जो बच्चो को महात्मा गाँधी के किस्से पड़ाते है गाँधी जी के सत्याग्रह पर किसी छात्र के निबंध को जाँचने वाले शायद यही शिक्षक है ,
यह कितना निराशाजनक है जब इतिहास लिखा जायेगा तोह कल्पना भी नही की जाकेगी शिक्षको को अपने आधिकारो के लिये कलम छोडनी पड़ी ,
क्या सच में शस्त्र की आवश्यकता है स्वयं विचार करे क्या कलम एक शस्त्र नही क्या हासिल होगा हिंसा से?
हम आहिंसा और अनुशासन में रह कर भी अपनी बात रख सकते है ,यही तोह सिखाया है हमे हमारे महात्माओ ने आज देश आरक्षण की आग में झुलस रहा है जिसके दूरगामी परिणाम दुखद होंगे ,
और इतने में ये शिक्षको का तड़का 2 गुटों की राजनीती को आमंत्रित करेगा में चाहूँगा शिक्षक अपनी बात रखे और सरकार उन्हें सम्मान पूर्वक उन्हें उनके हक से नाबजे पर सरकार को भी शिक्षको के आधिकार विरोधी बातो हवा नही देने की आवश्यकता है और शिक्षक रहे अपनी बात पर परन्तु बच्चो का नुकसान न हो और शिक्षा का सम्मान व् गरिमा बने रहे यह ध्यान रखना होगा यह विचार भी करना ही होगा , यह तोह हट हुइ आप अपनी बात रखे पर एसे नही जिसमे छात्रों को हर्जाना भुगतना पड़े l हिंसा और हट पर आप आधिक समय तक अड़े रहे तोह कुछ राजनेतिक विरोधी आपको उपयोग करने लगेंगे l
में शिक्षको से आवाहन करूँगा वह देश की मुख्य समस्या में अपना सहयोग करे आज हमारा देश आरक्षण से झुच रहा है l
अब देश में पुनह सरकार विरोधी गतिविधियों जा जन्म हुआ है हम राजस्थान में हुए गुर्जर आन्दोलन से अच्छी तरह बाकिब है और राजस्थान में हुए अभूत पूर्ण आर्थिक क्षति उपरांत एक बार फिर गुजरात पटेलो के आरक्षण में जल रहा है यह आग में पानी जल्द ही डालना होगा यह आग महारास्ठ के मराठा से लेकर हरियाणा के जाटो तक पहुंचेंगे फिर हर राज्य आरक्षण की मांग करेगा जाति ,वर्ग और धर्म के आधार पर हमारी धर्मनिपेक्षता ओउंधे मुह गिर पड़ेगी यह आशांति का पहला विगुल होगा और एक दिन सब शांत हो जायेगा ,
हमे इस गृह युद्ध को सुरु होने से पहले ही रोकना होगा और गृह युद्ध का दर्द क्या होता है पूछो सीरिया से उन 80 लाख शरणार्थी से जो एक वक़्त के भोजन के मोहताज है न रहने को ठिकाना है न खाने को न पानी प्यास बुझाने को क्या आप भी चाहते हो कोइ मासूम बालक हमारे समुदिये तटो पर औंदे मुह मृत प्राप्त हो बंद करो से आरक्षण का विगुल इसका स्वर सर्नाश की ध्वनि का पर्यावाची है l
क्या सच में आवश्यकता है आरक्षण की आपको या आपकी आने वाली पीढ़ी को आपको न होगी पर आप क्या छोड़ कर जा रहे हो आने वाली पीढ़ी को क्या कहेगा भविष्य जब इतिहास लिखा जायेगा राजा भारत के वंशज आपस में ही लड़ मर गये ,
क्या यही इस सभ्यता का अंत होगा अगर आरक्षण न थमा तोह निच्चित ही इतिहास हमे कोसेगा l

में अपने लेख के माध्यम से शांति का आवाहन करता हूँ मेरे लेख को व्यक्तिगत न लेते हुए सामाजिक व्यवस्था में आये व्यवधान को दूर करने का प्रयास समझे और यंहा आवश्यता आक्रोश की नही एकता की है 
                                                                                            BY- ANURAG SHARMA (प्राक्रतिक )
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TIME REVOLT कंही वक़्त बगावत न कर बैठे

कंही वक़्त बगावत न कर बैठे , ये हम से शिकायत न कर बैठे l
रोको इस अविनाशी क्षण मात्र को, ये सवाल जबाब न कर बठे ll
                कंही वक़्त बगावत न कर बैठे ..............................2
                                   --००--
यंहा निमेश एक में मित्र है , होते वक़्त के दामन में नित्य छिद्र है l
मा के आईने से मेने देखा है ,यंहा फिरते जगत में बनकर सब प्रेत है
यंहा प्रीति बेर विकने लगे ,और तट सरजू के दंगे है l
आस्था रह गई आकेली , और  मलिन गंगा के चर्चे है ll
जन्हा कुटिल योजनाओ का , मंदिर मज्जिद पर फहरा है l
दूल्हा कोइ नही पर , हर सर पर सजा एक सेहरा है ll
अब अंबर को जमी तक खीचा है , और चाँद पर होता रोज एक मेला है l
यंहा होता हर चौराये पर एक नया लंगर है l
फिर भी गरीब सोता भूखा घर के अन्दर है ll
बदल डालो अपनी प्राणली को, कंही प्रणय अंत न कर बैठे l
रोको इस अविनाशी क्षण मात्र को, कंही वक़्त बगावत न कर बैठे ll.....2
--००—
न बनाओ एसे आसरे , जन्हा ऊँचे हो हमारे आशियाने l
ये सने सने गिर जायेंगे हम मुसीबतों में गिर जायेंगे ll
रोक सको तोह रोक लो , इस कण कण क्षण की माया को
अन्यथा ये आगे अन्य राह में , आगे न निकल बैठे l
हमे छोड़ अपनी होड़ में ,ये आगे न निकल बैठे ll
समय तोह सीमाये लाँघ गया संयम शिविर न छोड़ बैठे l 
रोको इस अविनाशी क्षण मात्र को, कंही वक़्त बगावत न कर बैठे ll.......2
--००-
क्या होगा अगर वक़्त बगावत कर बैठे
कंही बाघ दहाड़ना भूल गया , और मन पंक्षी के मीत गया l
वृक्ष स्वार्थ न समझ बैठे , वायु अद्रोध न कर बैठे ll
कोकिल जब गाना भूल गये तोह मयूरा सावन भूल गया l
ये नियति नियत न हो जाये, क्षण ताबूत में न सो जाये ll
इससे पहले हम जाग जाये, सोते समय को साथ लाये l
जीवन को सुखमय,सुखद, और सफल बनाने को
अओ हम सब मिल कर आगे आये ll .........2


                                                                                              BY- ANURAG SHARMA (प्राक्रतिक )
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Friday 18 September 2015

मुझे मेरे देश की याद सताती है "STOP THE RACISM "

वर्ष 2010-11 दिसम्बर दृश ऑस्टेलिया के मेल्बौर्ण में भारतीय छात्रों पर हुए हमले का में विरोध करता हूँ उस हमलो में कई भारतीय छात्रों की जाने भी गई और कई घायल हुए एक घायल छात्र की भावनाओ कविता के रूप में पेश करता हूँ कैसे देश से वाहर एक भारतीय अपने भारत को याद करता
“जब कभी शाम ढल जाती है , सूरज को देने विदाई अम्बर पर चांदनी चाहती है l
पक्षी लौट आते है अपने अपने घरोंदे में और रात जब आति है ll
मुझे मेरे देश की याद सताती है ..................................................................2
जगाने को मुझे जब सूरज की किरण आति है ,पिने में चाय और न्यू पेपर की खीचातानी में पूरी सुबह निकल जाती है l
देख दोपहर की सुनी गलियों को मुझे मेरे देश की याद सताती है....................2
जब शाम आति है महफिले दोस्तों से सज जाती है l ..........2
जब कभी दोस्तों के बिच हिंदी बोली जाती है ll
मुझे मेरे देश याद सताती है ...................2
कुछ एसी यांदो का चित्रण कर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा जो भारत में आम है और विदेशो में ख़ास ....
जब कभी प्रेमी-प्रियतम को देखता हूँ ,
पत्नी को पति से झगडा करते देखता हूँ
देखता हूँ जब बसों की भीड़ और पान की गुमठी को ,
मेलो की रौनक और खेतों में लहराती फसलो को
दिखता है जब कभी बाज़ार में सिंघाड़ा और प्रफुलित हो उठता हूँ देख कर में आखाड़े को
आध्यापक की मार को बच्चो के भार को
मा के प्यार को बाप की डांट को
बहन के प्यार को दिलरुबा के इंकार को
जब कभी मिटटी से सौंधी-सौंधी खुशबू आति है सारी महकी फिजाये मुझे मेरे देश की और ले जाती है
देख इन मनमोहक दृशो को मुझे मेरे देश की याद सताती है .........................................................2
“मेरे देश में कुछ तोह वेवजय ही होता है जैसे .,,,,,”
वो सुनी गालिओ में कुत्तो का अपने इलाके की लडाई का रोना
नदी के बहते पानी में कंकड़ फैकना
कंचे , क्रिकेट और सितोडिया का होना हार कर जीतना और जीत कर उछलना
कुछ वजय एसी भी है जिन्हें याद कर आंखे भर
जब कभी घर की चौखट पर दीप जलता देखता हूँ ....,2
लोगो को रंग उड़ाते और रंगीन देखता हूँ .......,2
जब मिलते है लोग गले सब शिकबे भूला कर ..
में इस प्यार में अपने देश को देखता हूँ .....2
मेरा देश एक संस्कारो का देश है मेरे देश के संस्कार मेरे देश की संस्कृति में बसते है और जब कभी ये संस्कार नज़र आते है तब .......
जब कोइ युवती पूर्ण परिवेश में मुस्कुराती है
जब बेटा बाप के आगे झुक जाता है और अथिति कोइ घर आता है
जब चोट लगे किसी एक को तोह करवा एक हो जाता है
कसी भटके पथिक को कोइ अनजान डगर दिखा जाता है
देख इन संस्कार ओर सभ्यता को मुझे मेरा देश याद आता ...,2
और दुःख होता है जब
घायल होता है मेरा देश विदेश में , हमले होते है भारतीयों पर परदेश में
दोष गोरी काली चमड़ी का नही अंतर है परिवेष में
कितनी भी करलो तरक्की तुम परदेशियो
बहुत बड़ा अंतर है तुम्हारे और मेरे देश में ......,2




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Tuesday 15 September 2015

SAVE THE TREE

कभी आपने सोचा है वृक्षों ने हमे क्या दिया चलिये ये सोचना थोडा कठिन होगा ये सोचिये हमने वृक्षों से लिया क्या ?
शायद सोचेंगे तोह कल्पनाओ में खो जायेंगे हमे हर उस पल को याद करना होगा जो वृक्षों से जुडा रहा एक प्रतिउत्तर जो सामान्यता प्राप्त होगा  वह यह की वृक्ष न होते तोह शायद हम भी न होते हमारे ब्रमांड में  अपने गृह पर जीवन भी सफल न होता इसको वैज्ञानिक भाषा में समझे तोह हम पर्याप्त मात्रा में ओक्सीज़न प्राप्त नही कर पाते और यह गृह भी अन्य ग्रहों की तरफ मनविये जीवन से आछुता होता l
एक अन्य भाषा में समझे तोह हम और वृक्ष दोनों सगे भाई की तरह ज्ञात होते है इनकी उत्पत्ति में उपयोग होने वाले तत्व और हमारे तत्वों  में भिन्ता नही है
पर यह वह एकतरफ़ा रिश्ता है जिसे एक द्वारा निभाया गया तोह दुसरे ने जब याद किया जब उसे आवश्यकता महसूस हुइ
वृक्षों का इतिहास मानव सभ्यता से भी पूर्व का है वृक्षों में पनाह लेकर खड़ा हुआ मानव आज कितना विकसित हो गया हम केवल अनुमान लगा सकते है l
पर ये खामोश परोपकारी आज भी जरुरतमंदो को पनाह देना नही भुला मनविये सभ्यता ने अपना विकास किया और अपने रहने अनुकूल योग्य वातावरण निर्मित किया पर वृक्ष आज भी लाखो प्रकार की पक्षी प्रजाति और जानवरों के पनाहगार बने हुए है, जिसने अपने जीवन से लेकर मरते दम तक इंसान का साथ दिया और इंसानियत के लिए अपना सर्वस्य नौचावर कर दिया पर  इन्सान ने अपने जीवन से लेकर मरने तक उसे पानी तक न दिया
क्या इतनी निष्टुर हो गई मनवियता क्या सच में हम स्वार्थी हो गये ? जी हाँ
आपको याद न हो चलिए में याद दिलाता हूँ
जब जन्म हुआ तब पलना बनकर
चलना सिखाया इसने हमे तीन पाये की गाडी बनकर
लिखना सिखाया हमे पेन्सिल बनकर
तोह भूके को भोजन दिया फल बनकर
थके राहगीर को छांव दी इसने पत्तिया बनकर
ये आस्था में जिन्दा रहा फुल बनकर
इसने डूबते को बचाया नांव बनकर
ये बुडापे में सहारा बना लाठी बनकर
इसने इंसान को नियति के अनुकूल जिन्दा रखा खुद जलकर
वो वृक्ष ही थे जिन्होंने इन्सान को मुक्ति दी खुद राख बनकर
यह तथ्य हमारे स्वार्थ को और हवा देंगे
आज वृक्ष जिन्दा है खुद के भरोसे और इंसान ने अपने ताकतों को बड़ा लिया  आज इंसानी हुकूमत की आर्थिक व्यवस्था को बिना वृक्षों के योगदान से नही देखा जा सकता हमारे प्रतिदिन की गतिविधि वृक्षों से प्रभावित है हम जिस प्रकार बिना जल के जीवित नही रह सकते उसी प्रकार बिना वृक्षों के जीना भी उतना ही नामुमकिन है वृक्षों की छालो से बनने वाली औषदी हो या घर – वाहर की सजावट आज वृक्षों ने अपनी खुद की सुन्दरता को वेरंग कर इंसानी हुकूमत को रंगीन और सौन्दर्यमय बना दिया ,
क्या आपने कभी इनके हाल को जानने का प्रयास किया शायद नही और में अपने एक प्रयास का अनुभव सांचा करना चाहूँगा कोशिश करूँगा अपनी गिलानी को व्यान कर संकुं
फुर्सत के कुछ लम्हों में ,निकल कर समय के चंगुल से
व्यस्था को छोड़ अकेले अपने घर आया हूँ घुमने
वीरान और खामोश जंगल में
इन्हे देख कुछ अजीव ही अनुभव प्राप्त होता है
ये खामोश है पर कुछ कहना चाहते है
हमे रहने दो अकेला ये संकेत देना चाहते है
सांकेतिक भाषा में वृक्ष हमसे अपनी दशा का वर्णन करते है
बंद करो ये महासंग्राम अब हम हारे है
तुम हत्यारों के आगे हम निहत्थे और विचारे है
दूर कर दिया तुमने हमे आपने आप से
अब कुछ तोह शर्म करो अपने आप से
हमारे चारो और बिछी हरियाले और हमारी उचाई तुम्हे रास न आई
ये विडंबना है तुम्हारी बनाई बहुमंजिला इमारते हमे रास न आई
अब हरी भरी नही घूमिल है प्रक्रति तुम्हारी यंहा क्या लेने आये हो
क्या घर में लगा बगीचा भी चुभने लगा जो यंहा लगाने आये हो
वृक्षों की इस प्रताड़ना और क्रोध को सहना गिलानी का घूंट पिजाने जैसा है पर जो वृक्षों ने सहा उसको गिनना भी बहुत मुश्किल है l
हम बकाई में उन्हें उपयोग करते रहे और हमारी उप्योगियता की हद यंहा तक पहुँच गई की वह अब संख्याओ में कम होते जा रहे है आज विश्व की 7.50 अरव जनसंख्या
जिस तरफ वृक्षों का शौषण कर रही है निचित ही वह अपनी खो बैठेंगे वृक्षों की उप्योगियता से वृक्षों को परेशानी नही अलवत्ता उन्हें पुनह जीवन न मिल पाने का अफ़सोस है हमारी आवश्यकता अनुसार हम वृक्षों का उपयोग करे यह जायज है पर उतनी ही मात्रा में वृक्षों को पुनह खड़ा करे यह उतरदायित्व भी हमारा ही है आपका यह संख्की को जानकर हैरानी होगी विश्व में 7.5 अरव लोगो ने मिल कर 15 अरव वृक्षों को कटा है यह प्रतिवर्ष का आंकड़ा है आंकड़ो से स्पस्ट होता है प्रति व्यक्ति 2 वृक्षों का कटा गया जब की इन्हे इतनी संख्या में पुनह नही लगाया गया आज 12000 वर्षो में वृक्षों की संख्या 46 % की कमी आई है यह अवश्य ही चिंता का विषय है
इतने गहन चिंता में हम विकसित होने की गाथा गाने से बंद नही होते “क्या करेंगे वो गीत को गा कर जिसमे सरगम ही न हो “
में वृक्षों के बलिदान को विकसित होने का हथियार मानता हूँ , हमे वृक्षों के बारे में पुनह विचार की आवश्यकता है यह आवश्यकता हमारी नही यह मजबूरी है इस प्रकृति के संतुलन के लिए भी हमे वृक्षों का साथ देना होगा वृक्षों के लिए न सही अपने लिए क्योकि असंतुलित नियति में जीवन को खोज पाना मुश्किल होगा अगर मेरे इस लेख को पड कर कोइ एक वृक्ष को भी लगाता है तोह में समझूंगा मेरा मकसद पूरा हुआ 


 BY- ANURAG SHARMA (प्राक्रतिक )
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