Tuesday 25 August 2015

बदलाव जीवन का

नज़रे वंही है पर नज़ारे बदले
लोग चले तोह हम चले,पर हम चले तोह कारवां बदले
अब नही पूछता कोई पता गाँव की मेंठो पर
अब इन्सान ने अपने ठिकाने जो बदले
अब नही होते पुतले खड़े खेतो में  
पक्षियों ने अपने रस्ते जो बदले
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अब सावन आता है आके जाता है बसंत में बहार आ नही पाती
की ज्येठ चला आता है l
कब तक फैलाये पंख मयूरा नीले गगन के तले
समज गया अलबेला की मौसम ने अपने मिजाज़ बदले l
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अब बफादार हो गये इतने जानवर की शुभ लाभ के तरीके बदले l(कुत्ते से साभधान)
पहले वमुश्किल प्यास बुझाते थे ये मटके
अब पानी ने भी अपने रंग बदले (लाल –नीला –पिला –कला )
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विकल्पों में सिमट कर रह गये जीवन भेद नही आहार में
अब रत्नों की जगह बिकते है कांच के टुकड़े
और पानी में मिली है दूध की दो बुँदे बाज़ार में ll
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पहले इस आस्था को विश्वास था पत्थर पर l
    और अब भरोषा है पत्थर के मुखोटे पर ll
विश्वास किसी पर नही फिर भी अन्धविश्वास पर जोर देते है l
किश्तों में होते है फैसले की गुनेहगारो ने अपने तरीके बदले ll
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पहले तोह समय कटता था चौसर से चबूतरे पर पेड़ के निचे
और आज का मनोरंजन कारक है समाज के हाल का
की अब ज़मानेभर के युवा बिगड़े


  अनुराग शर्मा (अलबेला)
मो.8223945111

sharmaanu411@gmail.com
http://sharmaanu411.blogspot.in/

2 comments:

BT School Badarwas said...

वाह वाह वाह !!! "अलबेला" जी आपकी इस रचना को पढ़कर जो आनंद की अनुभूति हुई वो शायद शब्दों मैं प्रस्तुत नहीं की जा सकती है !!! कवि महोदय को इतनी बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई !!!
आपकी इस रचना को मैंने अपनी रचना-पाठ डायरी मैं सबसे ऊपर लिख लिया है, समय मिलने पर लोगों से आपके शब्द मेरी आवाज़ मैं शेयर करूँगा !!!
Once again lots of Congratulations Anurag for such a heart touching sweet poem !!!
Ghanshyam Sharma
BT: Brain Transformers

Q_You_City Hub said...

Dhanyabad +ghansyam sharma ji