Thursday 27 August 2015

जूता कांड

एक दिन बड़ी परेशानी को हमने अपने सर उठाया l हमारे एक पैर के जूते ने हमे लंगड़ा बनाया ll
दोपहर की खरीदारी के समय एक छोटा सा कांटा हमारे पैर के निचे आया l
हमारे जूते पर पड़ते ही उसने हमे अपना एहसास कराया ll
हमने आस पास कंही खम्बा देखा खम्बा न मिला तोह तसरीफ के लिए एक चबूतरा देखा l
एक पैर को दुसरे पैर पर थमाया पर कांटे को अपनी आँखों से ओउचल पाया ll
फिर खड़े हुए और चल दिये थोडा ही चले थे की एक कुछ चुभने का एहसास आया l
इस बार हमने अपने आप को नही किया परेशान और पास ही के एक मोचि को बुलाया l
संबाद :- मोची और हम
हम :- देख भाई बड़े गौर से ये दाए पैर का जूता परेशान कर रहा है जाने क्या है जो बार बार तंग कर रहा है .....,
मोचि :- में जल्द ही इसे ठीक कर दूंगा आप क्रपा कर इसे उतार दे और यंहा पर बैठे थोडा धीरज रखें पास ही की दुकान से चाय की चुस्की का मज़ा पाये ,,,
हम : वो सब तोह ठीक है हम बैठ भी लेंगे और चाय भी लेंगे पर यह बताओ की आप हमसे क्या लेंगे ?
मोचि :- ये तोह कांटा बतायेगा की तुम हमे कितना देंगे .,
हम :- क्या कंहा कांटे के हिसाब से पैसे लोगे अगर कांच हुआ तोह क्या लोगे ?
मोचि :- कांटा हो या कांच बात तोह बराबर है साहब आप तोह बस चाय का मज़ा लीजिये और पास पड़े पेपर पर अपना दिमाग खर्च कीजिये , में अभी इसे ठीक किये देता हूँ और एक दस की नोट आपसे लिए लेता हूँ ,
हम :- चलो भाई करो तुम हम पर कृपा जिससे हम भी हो जाये यंहा से विदा ,(पेपर पड़ते हुए ) क्या बात है मोचि आज सराफा बाज़ार बड़ा गुलज़ार है चारो तरफ पोस्टर लगे है लोगो का बड़ा सैलाब है लगता है किसी का इंतज़ार है ?
मोचि :- सही फ़रमाया साहब आज मंत्री जी का दौरा है वो अभी आते ही होंगे
(इतने में सैलाव से जयकारे और नारों की आवाज आने लगती है हमारा नेता कैसा हो .....नेता जी अमर रहे जैसे )
मोचि :- आप को बुरा न लगे तोह एक फरमाइश फरमाउ साहब l आप यंहा आराम करे में मंत्री जी का भाषण सुन आऊ साहब ll
हम :- शौक से चले जाओ मेरा जूता ठीक कर जाओ
मोचि :- ये ठीक हो गया साहब लाईये पैसे अब में चलता हूँ
उसके जाते ही मेने अपना जूता पहना दो कदम ही क्या चला था उसने फिर उसने जहर उगला l इस बार हो गया में आग बबूला लेकर एक पैर का जूता हाथ में लेकर मेने मोचि को खोजा ..,
मोचि जा पहुंचा मंत्री जी के सामने पहली लाइन में मेने मोची को अबाज लगाई उसके बार बार न सुनने पर मेने कट्टु शब्दों में बोला आज बेटा तेरी शाहमत आई ,
मेने जैसे ही जूता मोचि की तरफ फैका l मोची हो गया निचे मंत्री जी का खोपडा फूटा ll
देखते ही देखते पुलिश ने मुझे घेर लिया और सभी मिडिया के कैमेरो ने मुझे अपनी नजरो में खीच लिया
मंत्री जी ने बडप्पन देखाया और मुझे पुलिश से छुडाया में छोड अपने जूते को अपने घर की तरफ दौड़ा
घर जाकर देखा तमाम न्यूज चेनल वाले लोग और गली मोहल्ले के लोग मेरा इंतजार कर रहे थे
न्यूज वालों ने मुझपर सवालों की बौछार सी कर दी
आपने जूता क्यों मारा ?क्या आप मंत्री जी के कार्य से संतुष्ट नही ? आप किस पार्टी से है ?क्या आप आहाक्षण और भ्रटाचार का विरोध कर रहे थे ? मेने केवल इतना कहा मोचि ने मेरा कांटा नही निकला इसलिए मेने उसको जूता मारा बस इतना कह कर मेंने जैसे तैसे अपने आप को इन प्रश्नों से अलग किया और घर में गया तोह टीवी पर अपने आप को पाया सारे दिन यह बारदात सुर्खिया बनी रही और जब न्यूज़ में यह खबर को पाया की “ शिवचरण मोचिया (मंत्री जी का नाम )ने समाज में बड रहे भ्रष्टाचार ,आरक्षण,भेदभाव के लिये कोइ बात नही की इन्हे काँटों का नाम दिया गया इस लिए उन्हें जूता पड़ा और तुरंत मंत्री जी ने चुनावी पैतरा अपनाया और अब जीत के लिए काँटों की बात होने लगी देखते ही देखते मंत्री जी की प्रसिदी सातवे आसमान पर थी l
रातों –रात ये साधारण सा कवी भी प्रसिद हो गया मुझे मिलने लगे सुयोग्य कवी सम्मलेन के मोके तोह मंत्री जी भी शामिल हो गये जोर्ज बुश की श्रेणी में तुलना होने लगी उनकी गृह मंत्री से लेकर ऑस्टेलिया के प्रधान मंत्री से मंत्री जी जन्हा खड़े थे MLA के पद पर थोड़ी सी प्रसिदी से आसार बनने लगे मंत्रीमंडल के किसी पद के l
इस जूता कांड में एक बात मेरी समज से परी थी में प्रसिद हुआ जूता मरने से मंत्री जी प्रसिद हुए जूता खाने से पर इन सब बो मोचि कंहा गया जो हम दोनों के बिच था यह प्रश्न प्रश्न ही बनकर राह गया पर जब मंत्री जी आसीन हुए कुर्सी पर तब उत्तर प्राप्त हुआ

“की यह सब तोह मंत्री जी की ही चुनावी प्रचार प्रसार का एक हिस्सा था में और मेरा जूता तोह एक माध्यम था मरने वाला तोह कोइ और ही था , 
अनुराग शर्मा
मो 8223945111
http://sharmaanu411.blogspot.in/

Tuesday 25 August 2015

बदलाव जीवन का

नज़रे वंही है पर नज़ारे बदले
लोग चले तोह हम चले,पर हम चले तोह कारवां बदले
अब नही पूछता कोई पता गाँव की मेंठो पर
अब इन्सान ने अपने ठिकाने जो बदले
अब नही होते पुतले खड़े खेतो में  
पक्षियों ने अपने रस्ते जो बदले
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अब सावन आता है आके जाता है बसंत में बहार आ नही पाती
की ज्येठ चला आता है l
कब तक फैलाये पंख मयूरा नीले गगन के तले
समज गया अलबेला की मौसम ने अपने मिजाज़ बदले l
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अब बफादार हो गये इतने जानवर की शुभ लाभ के तरीके बदले l(कुत्ते से साभधान)
पहले वमुश्किल प्यास बुझाते थे ये मटके
अब पानी ने भी अपने रंग बदले (लाल –नीला –पिला –कला )
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विकल्पों में सिमट कर रह गये जीवन भेद नही आहार में
अब रत्नों की जगह बिकते है कांच के टुकड़े
और पानी में मिली है दूध की दो बुँदे बाज़ार में ll
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पहले इस आस्था को विश्वास था पत्थर पर l
    और अब भरोषा है पत्थर के मुखोटे पर ll
विश्वास किसी पर नही फिर भी अन्धविश्वास पर जोर देते है l
किश्तों में होते है फैसले की गुनेहगारो ने अपने तरीके बदले ll
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पहले तोह समय कटता था चौसर से चबूतरे पर पेड़ के निचे
और आज का मनोरंजन कारक है समाज के हाल का
की अब ज़मानेभर के युवा बिगड़े


  अनुराग शर्मा (अलबेला)
मो.8223945111

sharmaanu411@gmail.com
http://sharmaanu411.blogspot.in/

Monday 24 August 2015

शिक्षा एक व्यवसाय

बिरोजगारी एक समस्या है l और शिक्षा इसे दूर करने का एक मात्र साधन हो तोह ये निश्चित है हम उच्य शिक्षा प्राप्त कर इस समस्या का अंत कर पाएंगे l
में इस कल्पना मात्र से प्रफुल्लित हो उठता हूँ l पर जब ज्ञात होता है आज हम उस युग में है जन्हा शिक्षा एक व्यवसाय है तब डर लगता है कंही इस समस्या के अन्त की प्राप्ति में हम प्रारंभ को ही न भूल जाए l
मुझे स्पष्ट याद नही की शिक्षा एक व्यवसाय कब बना पर एक वाक्य याद है जब गुरु द्वार्णआचार्य ने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में उसका अंगूठा ही मांग लिया था l इस तथ्य से हम अनुमान लगा सकते है यह पारंपरिक सभ्यता लगभग 5500 वर्ष पूर्व की है l
यह सत्य है इस समस्या के संकेंत हमे आदिकाल से ही मिलना प्रारंभ हो गये थे की एक दिन शिक्षा लाभ का साधन होगा l
यह चलन भी काफी वर्षो का है जिसने शिक्षा प्राप्त की उसे उसका मोल चुकाना होगा चाहे वो गुरु की इक्षा से हो या आपकी स्वेक्षा l
श्री कृष्ण से लेकर चन्द्रगुप्त मोर्य तक सभी ने इस परंपरा का पालन किया है l
पर अब गुरु और गुरुत्व दोनों की परिभाषा बदल चुकी है आज समय वो है जब कई गुरु तोह शिक्षा ही इस कारण ग्रहण करते है की भविषय में इसका मोल प्राप्त कर सके l
इस वर्तमान समय में उज्य शिक्षा प्राप्ति पद्दति इतनी महंगी है की यह आज भी एक साधारण माध्यम वर्गी परिवार की पहुँच से दूर है l
पर मुझे समझ नही आता वह शास्त्र और गुरु ज्ञान जो कहा करते थे ज्ञान का मोल नही यह अनमोल है वही आज इसका मोलभाव तय करते नज़र आते है l
हमे निशुल्क शिक्षा पर जोर देने की अवश्यकता है क्योकि गरीबी और गरीब के पास शिक्षा प्राप्ति के लिए पर्याप्त धन का न होना हमारे देश की समस्या है पर गरीबी के साथ हमारी समस्या बेरोजगारी यह दूर होती नज़र नही आ रही कभी ये आरक्षण का शिकार होती है तोह कभी भेदभाव का l
आज शिक्षा के साथ ही जाती का वर्गीकरण हो चूका है इसे सामान्य / पिछड़ा / अनुसूचित जाती /अनुसूचित जनजाति में विभाजित है यह वर्गीकरण भी बिरोजगरी का कारण हो सकता है l
में कभी नही समझ पाया की एक छत की निचे सभी प्रकार की जाती , वर्ग एवं धर्मो के छात्र एक साथ शिक्षा ग्रहण करते है पर शिक्षा उपरांत रोजगार अवसर पर जाती , वर्ग , धर्म में अंतर क्यों रखा जाता है l
ये आरक्षण , भेदभाव क्यों ....?
ये असामान्यता क्यों .............?
शिक्षा को एकरूपता की आवश्कता है यह सत्य है शासन द्वारा शिक्षा पर काफी पैसा खर्च किया जाता है कई नए कानून भी बनाये जा रहे है शिक्षा एक आधिकार के रूप में सामने आया है l
पर कंही न कंही हमारे आधिकारो का हनन हो रहा है l
            शिक्षा का मोलभाव हो रहा है l उच्य शिक्षा (इंजीनियरिंग ,डॉक्टर ,आई .ए. एस ,आई. पि . एस आदि ) व्यवसाहिक रूप से संचालित है और इस सञ्चालन एवं दर के कारण यह सामान्य वर्ग से बहुत दूर है l
हमे स्वयं ही विचार करना होगा शिक्षा के नविन प्रयास को समाज में लाना होगा हमे शिक्षा से जीत पाये तो संभव है बेरोजगारी को ख़त्म कर पायेगे कितना सुन्दर होगा सर्व शिक्षित रोजगार युक्त भारत ,,,,,,,,,,,,,
           सभी विचार कर अपनी कल्पनाये और मत मुझे भेज सकते है
 

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                                                       अनुराग शर्मा  
                                      मो.8223945111

                                                               Email – sharmaanu411@gmail.com 
http://sharmaanu411.blogspot.in/