हमारी धार्मिक धरनाओ की आड़ में हम देवी देवताओ की अशंक मात्रा में
मूर्तियों को बना कर उनकी पूजा अर्चना कर उन्हें जल में विसर्जित करते है यह अन्धविश्वास इतना बड चूका है की इसे रोक
पाना संभव नही इनमे इतना पैसा और मनोरंजन झांकिया लगती है की इन विषयों पर किसी का ध्यान ही नही जाता जरा
विचार करे केवल जल जीव ही धार्मिक धर्नाओ का शिकार नही होते हमारे सारे पर्व
प्रदुषण से युक्त है चाहे वो दीपावली हो या होली या फिर गणेश पूजा या दुर्गा पूजा क्या
हम प्रकृति के प्रति इतने निष्ठुर हो गये है समय के साथ पुरानी परंपराओ को बदला
पड़ता है और नविन परंपराओ का जन्म होता है हम प्रकृति के बदलाव को देख सकते है पर
कोइ उपाय तलाश्पाने में क्यों सक्षम नही हमे खुद विचार करना होगा हम संख्याओ में
कम होते जा रहे हम वृक्षों और जीवो को खोते जा रहे है
क्या हम देवी ,देवताओ की मूर्तियों को विसर्जित करने की वजाह
उन्हें पारंपरिक विधि विधान से अनतेष्टि नही कर सकते जी हाँ में उसी तरफ इशारा कर
रहा हूँ हम जिस प्रकार हम जल ,वायु ,अग्नि ,मिटटी (थल ),नव पंच तत्व से निर्मित है
इन्ही तत्वओ का इस्तेमाल हम मूर्तियों को बनाने में करते है हाँ ये अलग है आज काल
कुछ केमिकल मुर्तित्यो में मिलाये जाने लगे है पर आग्नि जब हमे हमारे पाप ,दोष को जलाकर शुद्ध कर सकती है तोह केमिकल क्या है
और हमारे वेद,शाश्त्रो में भी यही विधान है हम जिन मूर्तियों को माँ और पिता रूप
में पूजते है तोह उनके सत्य कर्म हेतु भी खुद जिम्मेदार है पर इसा तोह कंही नही
लिखा की देवी ,देवताओ को जल में विसर्जित किया जाना चाहिये l यह वह एक उपाय है
जिससे जल प्रदुषण को कम किया जा सकता है क्योकि जल हमारे जीवन का मुख्य स्त्रोत है
शायद यह प्रदुषण (मूर्तियों में उपयोग होने वाला केमिकल ) हमारी उच्य पैदाबार को
कम कर रहा हो हम एक कृषि प्रधान देश के नागरिक है और हम सभी को इन सब मुद्दों पर गहन अध्यन करने की आवश्यकता है
अगर हमने उपाय नही तलाशे तोह हो सकता है हमे भविष्य में आर्थिक संकट को सहन करना
पड़े अत: मेरा आप सब से अनुरोध है की इस संवेदनशील विषय पर अवश्य विचार करे और अपना
मत रखे
अनुराग शर्मा
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