मेरा यह लेख पढ़ने के पहले मेरे बारे यह निश्चित कर लीजिये कि...
मेरे आराध्य #श्री_राम ही हैं...🙏
निःसंदेह मैं #रावण को अपना आराध्य नहीं मान सकता...
निःसंदेह मैं #दशग्रीव को पूज्य नहीं मान सकता...
निसंदेह रावण पूज्यनीय नहीं है...परंतु रावण के गुणों को बताने पर आदमी को रावण भक्त मान लेना भी उतना ही गलत है...
हमारे आराध्य श्री राम ही हैं और श्री राम ही रहेंगे...
परंतु रावण ने वैदिक संस्कृति (तब सनातन धर्म नहीं था) को अमूल्य आविष्कार दिये हैं उन्हे भी पढ़ना जरूर चाहिये...और चर्चा भी करना चाहिये...
हां! रावण ने गलत राह चुनी मोक्ष पाने की...क्योंकि सनातन में मोक्ष पाने के तीन रास्ते माने गए हैं...
1:- #परोपकार, दान-पुण्य आदि कार्यों से...व्यक्ति अपने धन (अपने पूर्वजों से प्राप्त थाती/विरासत अथवा अपने द्वारा अर्जित पूण्जी) का उपयोग कर परोपकार के इतने कार्य करे कि #राजा_हरीशचंद्र की भांति एक उदाहरण प्रस्तुत कर सके...
परंतु रावण स्वाभाविक राजा होता तब वह इस राह से मोक्ष प्राप्त कर सकता था...उसे असुरों का राज्य मिला अपने #नाना_सुमाली के कारण...ना तो वह उसका अधिकारी था और ना ही उसने इसे विजय किया था...साथ ही लंका पर भी #ऋषि_पुलत्स्य ने (लंका को समृद्ध बनाने वाले रावण व कुबेर के पिता) #कुबेर को स्थापित किया था...
2:- #तपोबल से...यह राह शुद्ध बीज के मनुष्यों के लिये ही होती है...रावण एक #महर्षि और एक #असुरपुत्री के पुत्र होने के कारण इस श्रेणी में नहीं थे...
3:- किसी #महापुरुष (ईश्वर के किसी अवतार) के हाथों मृत्यु का वरण करना...यही राह रावण के लिये संभव थी...
यह लेख लिखने का कारण रावण का गुणगान नहीं है...अपितु यह बताना है कि...हम रावण जैसे पुत्र, भाई, पति या पिता की अपेक्षा क्यों नहीं कर सकते...परंतु फिर भी रावण ने सनातन धर्म को जो दिया है उसे सम्मान मिलना चाहिये...क्योंकि वह सम्मान उन्हे #देवों ने तथा #देवों_के_देव ने दिया है...
हमारे पूर्वजों ने यह भी कहा है...
विषादप्यमृतम ग्राह्यम बालादपि सुभाशितम...
अर्थात्
"विष से भी अमृत और बच्चों से भी अच्छी बातें ग्रहण कर लेना चाहिये"...
जिस तरह हम रावण को आदर्श नहीं मान सकते...ठीक उसी तरह हम रावण के ज्ञान, शौर्य, पराक्रम तथा सामर्थ्य को भुला भी नहीं सकते...यदि आप रावण को उसके हिस्से का सम्मान नहीं दे सकते तो भूल जाएँ #शिव_शम्भू को भी...
क्योंकि महादेव ने ही उन्हे #शिव_ताण्डव_स्त्रोत्त की रचना पर अपने नाम #रुद्र का पर्यायवाची #रावण_नाम दिया था...
साथ ही यह वरदान भी दिया कि "मेरी आराधना के लिये तुम्हारे द्वारा रचित स्त्रोत व मंत्रों का विशेष महत्व होगा"...
वे लोग भूल जाएँ हमारे वेदों को #पढ़ना...जितना सुनें उसे ही वेद मान लें...क्योंकि #भोलेनाथ ने ही #दशानन को वेदों के #संगीतमय #भाष्य_रूपांतरण ( #लिपिबद्ध करने) का दायित्व सौंपकर उन्हे चिरसम्मान के योग्य बनाया था...उसके पहले तक वेद #श्रुति (गुरु द्वारा शिष्य को सुनाए जाने वाले) के रूप में ही उपलब्ध थे...
रावण ने ही ऋग्वेद को संगीतबद्ध भी किया था...
वे लोग भूल जाएं रावणकृत #शिव_महीम्न्_स्त्रोत को...
वे लोग भूल जाएं #ज्योतिष_शास्त्र को जिसे #शिव_जी से सामान्य मानव तक लाने का पुनीत कार्य रावण ने किया...
भूल जाएं #सामुद्रिक_शास्त्र (चेहरे तथा मुद्राओं से मानव स्वभाव को पढ़ना) को जिसका उद्भव रावण द्वारा किया गया...
भूल जाएं #यंत्र_विज्ञान #जल_संयोजन को...
भूल जाएं #रसायन_शास्त्र को क्योंकि रावण ने ही पारद (पारे) को बांधकर शिवलिंग बनाने तथा पारद से ही स्वर्ण बनाने की विधि खोजकर इसे ऊँचाई प्रदान की...
भूल जाएं #संगीत को, क्योंकि #रावण_वीणा (राजस्थान का रावण हत्था) जैसे बेहद सस्ता और आसानी से बनाया जाने वाल विलक्षण वाद्य रावण ने ही दिया...
भूल जाएं #अर्क को इस्तेमाल करना, क्योंकि #अर्क_प्रकाश ग्रंथ के माध्यम ये रावण ने ही अर्क बनाने की विधि हमें बताई है...
आज के धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों ने #अरुण_संहिता, #अंक_प्रकाश, #इंद्रजाल, #कुमार_तंत्र, #रावणीयम् आदि ग्रंथों का नाम तक नहीं सुना होगा...जिनका वैदिक शिक्षा ग्रहण करते समय अध्ययन करना अत्यावश्यक है...इन सभी के रचयिता रावण ही था...
ऐसे लोग कभी #नाड़ी_वैद्य (जो केवल आपकी नाड़ी के स्पंदन से आपकी बीमारी पकड़ लेते हैं) को भी अपनी बीमारी ना दिखाएँ...क्योंकि #नाड़ी_परीक्षा नामक ग्रंथ की रचना भी रावण ने ही की थी...
ज्योतिष में इंद्रजाल, रावणीयम, रावण संहिता जैसे ग्रंथ रावण ने लिखे...ज्योतिष में पारंगत होने के लिये इनका अध्ययन अत्यावष्यक है...
रावण ने ही हमें ज्योतिष, हस्तरेखा और सामुद्रिक शास्त्र का ज्ञान अरुण संहिता ग्रंथ के माध्यम से दिया...
चिकित्सा विज्ञान को रावण ने दश #शतकात्मक,
अर्क बनाने की विधि #अर्क_प्रकाश,
#उड्डीशतंत्र,
नाड़ी से रोग पहचानने की कला #नाड़ी_परीक्षा,
पूरे परिवार के स्वास्थ के लिये #कुमार_तंत्र जैसे ग्रंथ दिये...(कुमार तंत्र में ही चेचक, छोटी माता, बड़ी माता जैसे रोगों के उपचार बताए गए हैं)..
रावण ने ही मंदोदरी को उदर (कोख) में पल रहे शिशु की देखभाल के नियम के रूप में #अंक_प्रकाश नामक ग्रंथ रचकर दिया...जिसमें गर्भस्थ शिशु को कष्ट रोग और काल से बचाने के उपाय बताए हैं...
इन सभी श्रेष्ठ कार्यों के बावजूद रावण पूज्य, आराध्य या आदर्श नहीं हो सकता...क्योंकि उनका मोक्ष पाने का तरीका गलत था...चाहे वो मजबूरी में ही हो...हम कभी रावण जैसा पुत्र, भाई, पति या पिता नहीं चाह सकते...यह एक बहुत अच्छा उदाहरण है कि हम अपने जीवन में कितने ही सत्कर्म कर लें यदि जीवन की अंत ठीक नहीं रहा तो सबकुछ व्यर्थ है...
यहाँ मैं रावण को पूज्य मानकर सम्मान देने की बात नहीं कर रहा हूँ...कम ये कम हम रावण के चरित्र पर अध्ययन तो कर ही सकते हैं...उसे क्यों हेय मान रखा है हमने?
वाल्मीकि जी रामायण में रावण के बारे में लिखते हैं,
"अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युतिः।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता।।"
अर्थात्
रावण को देखते ही हनुमान मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं
" #रूप, #सौन्दर्य, #धैर्य, #कान्ति तथा #सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि रावण में #अधर्म ना होता तो वह देवलोक का भी स्वामी बन जाता"...
और यही मैं भी कहता हूँ कि रावण के अधर्म को छोड़कर बाकी बातें तो हम ग्रहण करते ही है...क्या हमें हनुमान जी की तरह उसके गुणों को नहीं मानना चाहिये?
जो लोग रावण के प्रतीकात्मक स्वरूप #पुतला_दहन का विरोध करते हैं वे भी गलत है...क्योंकि रावण ने ही यह कामना की थी कि जब जब #प्रभु_श्री_राम का नाम आए तब तब मेरा नाम भी लिया जाए...उन्होंने अपना #नाम_अमर करने के लिये ही रघुनंदन के हाथों मृत्यु का वरण करना सुनिश्चित किया था...इसलिये यदि कोई व्यक्ति रावण के चरित्र से प्रभावित भी है तब भी इसका विरोध करना गलत ही होगा...
हमें अपने इतिहास से सीखने के लिये जिस तरह नकारात्मक बातों को पढ़ना या जानना आवश्यक है उसी तरह हमें हमारी संस्कृति की रक्षा के लिये सभी सकारात्मक घटनाओं को भी समझना चाहिये...
इयलिये रावण को भले पूज्य ना माने, मानना भी नहीं चाहिये...परंतु उसके जीवन पर अध्ययन तो सभी को करना ही चाहिये...
इतिहास विषय की सर्वाधिक उपयोगिता यही है कि हम पूर्व में की गई गलतीयों को समझें और उन्हे दोहकाने से बचें...तथा पूर्व में अर्जित ज्ञान का अध्ययन कर उसे और आगे बढ़ाएं...
जय सनातन...
जय माँ भारती...
नि खि ल