हर इंसान बदल जाता है , जब मजबूरिया सताती है ,
हर जुबान बंद हो जाती है , जब रूसबाईयां नज़र आती है ,
बह जाता है वो पानी भी अपनी तरह जब विसाद ही न रहे
और अक्सर भूल जाती है लोग जब मुलाकात ही न रहे
अपने तोह निभा न सकें , तोह परायो को क्या दोष देना ,
बेहतर यही है की अपनी अलबेली तमन्नाओ को मिटा लेना
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