Friday 22 July 2016

INDIAN EDUCATION SYSTEM


छठी के छात्र छेदी कुमार ने 6×6= 36 की जगह 32 कहकर जैसे ही बत्तीसी दिखाई , गुरुजी ने छड़ी उठाई और मारने वाले ही थे की छेदी ने कहा , "खबरदार अगर मुझे मारा तो! मे गिनती नही जानता मगर आरटीई की धाराएँ अच्छी तरह जानता हूँ।
गणित मे नही , हिंदी मे समझाना आता है।
गुरुजी चौराहों पर खड़ी मूर्तियों की तरह जड़वत हो गए। जो कल तक बोल नही पाता था,वो आज आँखें दिखा रहा है।
शोरगुल सुनकर प्रधानाध्यापक भी उधर आ धमके, कई दिनों से उनका कार्यालय से निकलना ही नही हुआ था वे हमेशा विवादों से दूर रहना पसंद करते थे, इसी कारण से उन्होंने बच्चों को पढ़ाना भी बंद कर दिया था। आते ही उन्होंने छड़ी को तोड़ कर बाहर फेंका और बोले, सरकार का आदेश नही पढ़ा ? प्रताड़ना का केस दर्ज हो सकता है। रिटायरमेंट नजदीक है , निलंबन की मार पड़ गई तो पेंशन के फजीते पड़ जाएँगे बच्चे न पढ़े न सही , पर प्रेम से पढ़ाओ,उनसे निवेदन करो,अगर कही शिकायत कर दी तो ?
बेचारे गुरुजी पसीने पसीने हो गए मानो हर बूँद-बूँद से प्रायश्चित टपक रहा हो! इधर छेदी "गुरुजी हाय हाय" के नारे लगाता जा रहा था और बाकी बच्चे भी उसके साथ हो लिए।
प्रधानाध्यापक ने छेदी को एक कोने मे ले जाकर कहा, "मुझसे कहो क्या चाहिए ?"
छेदी बोला, "जब तक गुरुजी मुझसे माफी नही माँग लेते है, हम शाला का बहिष्कार करेंगे,बताए की शिकायत पेटी कहाँ है ?"
समस्त स्टाफ आश्चर्यचकित और भय के वातावरण में था । छात्र जान चुके थे की उत्तीर्ण होना उनका कानूनी अधिकार है।
बड़े सर ने छेदी से कहा की में उनकी तरफ से माफी माँगता हूँ, पर छेदी बोला, "आप क्यों मांगोगे ? जिसने किया वही माफी माँगे, मेरा अपमान हुआ है।"
आज गुरुजी के सामने बहुत बड़ा संकट था । जिस छेदी के बाप तक को उन्होंने दंड , दृढ़ता और अनुशासन से पढ़ाया था , आज उनकी ये तीनों शक्तिया छेदी के सामने परास्त हो चुकी थी , वे इतने भयभीत हो चुके थे कि एकांत मे छेदी के पैर तक छूने को तैयार थे , लेकिन सार्वजनिक रूप से गुरूता के ग्राफ को गिराना नही चाहते थे । छड़ी के संग उनका मनोबल ही नही अपितु परंपरा , प्रणाली और मर्यादा भी टूट चुकी थी। सारी व्यवस्था नियम , कानून एक्सपायर हो चुके थे , कानून क्या कहता है, अब ये बच्चो से सीखना पढ़ेगा!
पाठ्यक्रम में अधिकारों का वर्णन था , कर्तव्यों का पता नही था। कि अंतिम पड़ाव पर गुरु द्रोण स्वयं चक्रव्यूह मे फँस जाएँगे!
वे प्रण कर चुके थे की कल से बच्चें जैसा कहेंगे , वैसा ही वे करेंगे , तभी बड़े सर उनके पास आकर बोले , "मे आपको समझ रहा हूँ । वह मान गया है और अंदर आ रहा है , उससे माफी माँग लो , समय की यही जरूरत है।"
छेदी अंदर आकर टेबल पर बैठ गया और हवा के तेज झोंके ने शर्मिन्दा होकर द्वार बंद कर दिए ।
अब मेरी कलम को चाहिए कि वह यहीं थम जाए । कई बार मौन की भाषा संवादों पर भारी पड़ जाती है ।

"सभी सम्मानिये शिक्षक गुरूजी को समर्पित "

Thursday 14 January 2016

सास बहु की "तू _तू _में _में "

भारत की परम्पराओ और सामाजिक मान्यताओ का नविन विचारधारा के बिच चल रहा एक चर्चित्र गृह युद्ध है “सास –बहु की “तू –तू -में -में l
यंहा दोषी कोन है यह खोजना ही एक चुनोती है l पर क्या कभी आपने एस गृह युद्ध को समझने का प्रयास किया ? शायद किया होगा पर मुझे लगता है यह केवल अहम् और गिरते साम्राज्य और बनती बिरासत की लडाई नही अपितु केवल सोच में परिवर्तन और मानसिकता को ठेस पहुँचाने वाले अहम्  का युद्ध है एक कहानी के माध्यम से में आप लोगो तक यह युद्ध की हकीकत सामने लाने का प्रयास करता हूँ


आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली।
आरती और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा।
दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी.
एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई।
आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…”
बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.
लेकिन आरती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा ….
अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !
कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?”
क्या करना होगा ?”, आरती ने पूछा.
पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है।
कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.
पिता ने आगे कहा -लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी।
यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?”
आरती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई.
ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया।
साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया. अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती।
रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती।
सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।

कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया. बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी।
धीरे-धीरे चार महीने बीत गए. आरती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी।
किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी।
बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी।
छठा महीना आते आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी।
जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी।
इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … !
वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!
पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था हा हा हा !!!
"बेटी को सही रास्ता दिखाये,

माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करे"

Wednesday 13 January 2016

तमन्नाये


हर इंसान बदल जाता है , जब मजबूरिया सताती है ,
हर जुबान बंद हो जाती है , जब रूसबाईयां नज़र आती है ,
बह जाता है वो पानी भी अपनी तरह जब विसाद ही न रहे
और अक्सर भूल जाती है लोग जब मुलाकात ही न रहे
अपने तोह निभा न सकें , तोह परायो को क्या दोष देना ,

बेहतर यही है की अपनी अलबेली तमन्नाओ को मिटा लेना