Thursday 28 August 2014

हमारी धार्मिक धरनाये क्या हमारा ही नाश कर देगे ?

हमारी धार्मिक धरनाओ  की आड़ में हम देवी देवताओ की अशंक मात्रा में मूर्तियों को बना कर उनकी पूजा अर्चना कर उन्हें जल में विसर्जित करते है  यह अन्धविश्वास इतना बड चूका है की इसे रोक पाना संभव नही इनमे इतना पैसा और मनोरंजन  झांकिया लगती है की  इन विषयों पर किसी का ध्यान ही नही जाता जरा विचार करे केवल जल जीव ही धार्मिक धर्नाओ का शिकार नही होते हमारे सारे पर्व प्रदुषण से युक्त है चाहे वो दीपावली हो या होली या फिर गणेश पूजा या दुर्गा पूजा क्या हम प्रकृति के प्रति इतने निष्ठुर हो गये है समय के साथ पुरानी परंपराओ को बदला पड़ता है और नविन परंपराओ का जन्म होता है हम प्रकृति के बदलाव को देख सकते है पर कोइ उपाय तलाश्पाने में क्यों सक्षम नही हमे खुद विचार करना होगा हम संख्याओ में कम होते जा रहे हम वृक्षों और जीवो को खोते जा रहे है
क्या हम देवी ,देवताओ की मूर्तियों को विसर्जित करने की वजाह उन्हें पारंपरिक विधि विधान से अनतेष्टि नही कर सकते जी हाँ में उसी तरफ इशारा कर रहा हूँ हम जिस प्रकार हम जल ,वायु ,अग्नि ,मिटटी (थल ),नव पंच तत्व से निर्मित है इन्ही तत्वओ का इस्तेमाल हम मूर्तियों को बनाने में करते है हाँ ये अलग है आज काल कुछ केमिकल मुर्तित्यो में मिलाये जाने लगे है पर आग्नि जब हमे हमारे पाप ,दोष  को जलाकर शुद्ध कर सकती है तोह केमिकल क्या है और हमारे वेद,शाश्त्रो में भी यही विधान है हम जिन मूर्तियों को माँ और पिता रूप में पूजते है तोह उनके सत्य कर्म हेतु भी खुद जिम्मेदार है पर इसा तोह कंही नही लिखा की देवी ,देवताओ को जल में विसर्जित किया जाना चाहिये l यह वह एक उपाय है जिससे जल प्रदुषण को कम किया जा सकता है क्योकि जल हमारे जीवन का मुख्य स्त्रोत है शायद यह प्रदुषण (मूर्तियों में उपयोग होने वाला केमिकल ) हमारी उच्य पैदाबार को कम कर रहा हो हम एक कृषि प्रधान देश के नागरिक है और हम सभी को  इन सब मुद्दों पर गहन अध्यन करने की आवश्यकता है अगर हमने उपाय नही तलाशे तोह हो सकता है हमे भविष्य में आर्थिक संकट को सहन करना पड़े अत: मेरा आप सब से अनुरोध है की इस संवेदनशील विषय पर अवश्य विचार करे और अपना मत रखे     


                                                                          अनुराग शर्मा 

Thursday 3 July 2014

खुद को भारतीय कहने वालो गर्व करो

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इतिहास मौन है परन्तु महाभारत युद्ध में महा संहारक क्षमता वाले अस्त्र शस्त्रों और विमान रथों के साथ ऐक एटामिक प्रकार के युद्ध का उल्लेख भी मिलता है। महाभारत में उल्लेख है कि मय दानव के विमान रथ का परिवृत 12 क्यूबिट था और उस में चार पहिये लगे थे। देव दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है जैसे कि हम आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं। इस युद्ध के वृतान्त से बहुत महत्व शाली जानकारी प्राप्त होती है। केवल संहारक शस्त्रों का ही प्रयोग नहीं अपितु इन्द्र के वज्र अपने चक्रदार रफलेक्टर के माध्यम से संहारक रूप में प्रगट होता है। उस अस्त्र को जब दाग़ा गया तो ऐक विशालकाय अग्नि पुंज की तरह उस ने अपने लक्ष्य को निगल लिया था। वह विनाश कितना भयावह था इसका अनुमान महाभारत के निम्न स्पष्ट वर्णन से लगाया जा सकता हैः-
“अत्यन्त शक्तिशाली विमान से ऐक शक्ति – युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया…धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिस की चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा…वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया…उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि पहचानने योग्य नहीं थे. उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे…बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे और पक्षी सफेद पड़ चुके थे…कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए…उस अग्नि से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित जलधाराओं में डुबा लिया…”
उपरोक्त वर्णन दृश्य रूप में हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु विस्फोट के दृश्य जैसा दृष्टिगत होता है।
ऐक अन्य वृतान्त में श्री कृष्ण अपने प्रतिदून्दी शल्व का आकाश में पीछा करते हैं। उसी समय आकाश में शल्व का विमान ‘शुभः’ अदृष्य हो जाता है। उस को नष्ट करने के विचार से श्री कृष्ण नें ऐक ऐसा अस्त्र छोडा जो आवाज के माध्यम से शत्रु को खोज कर उसे लक्ष्य कर सकता था। आजकल ऐसे मिस्साईल्स को हीट-सीकिंग और साऊड-सीकरस कहते हैं और आधुनिक सैनाओं दूारा प्रयोग किये जाते हैं।
राजस्थान से भी…
प्राचीन भारत में परमाणु विस्फोट के अन्य और भी अनेक साक्ष्य मिलते हैं। राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव राख की मोटी सतह पाई जाती है, वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे।
‘लक्ष्मण-रेखा’ प्रकार की अदृष्य ‘इलेक्ट्रानिक फैंस’ तो कोठियों में आज कल पालतु जानवरों को सीमित रखने के लिये प्रयोग की जातीं हैं, अपने आप खुलने और बन्द होजाने वाले दरवाजे किसी भी माल में जा कर देखे जा सकते हैं। यह सभी चीजे पहले आशचर्य जनक थीं परन्तु आज ऐक आम बात बन चुकी हैं। ‘मन की गति से चलने वाले’ रावण के पुष्पक-विमान का ‘प्रोटोटाईप’ भी उडान भरने के लिये चीन ने बना लिया है।
निस्संदेह रामायण तथा महाभारत के ग्रंथकार दो प्रथक-प्रथक ऋषि थे और आजकल की सैनाओं के साथ उन का कोई सम्बन्ध नहीं था। वह दोनो महाऋषि थे और किसी साईंटिफिक – फिक्शन के थ्रिल्लर – राईटर नहीं थे। उन के उल्लेखों में समानता इस बात की साक्षी है कि तथ्य क्या है और साहित्यक कल्पना क्या होती है। कल्पना को भी विकसित होने के लिये किसी ठोस धरातल की आवश्यक्ता होती है।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र जैसे अस्त्र अवश्य ही परमाणु शक्ति से सम्पन्न थे, किन्तु हम स्वयं ही अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं और उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना, हमारा ऐसा मानना केवल हमें मिली दूषित शिक्षा का परिणाम है जो कि, अपने धर्मग्रंथों के प्रति आस्था रखने वाले पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य विद्वानों की देन है, पता नहीं हम कभी इस दूषित शिक्षा से मुक्त होकर अपनी शिक्षानीति के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर भी पाएँगे या नहीं।
इसे आधिक से आधिक शेयर करे ताकि भारतीय इतिहास की ताकत का बोध सभी को हो 


                                                                                                                         निवेदक 


                                                                                                                       अनुराग शर्मा 


                                                                                                        sharmaanu411@gmail.com 

Monday 2 June 2014

Badal raha jamana

Badal raha jamana ...,,

Hamari hariyali ab rangbirangi hoti jaa rahi ……2
Janha dikhte the lambe lambe vraksh ab vanha
Emartein najar aa rahi hai ………………..……………2
Ye nile gagan ki tasveer kuch dhundhli dhundhli si najar aa rahi hai ……….2
Janha firte the pakshi befikr ho kar aaj vanha goli bari najar aa rahi hai,
Banth diya sarhadon me jahan ko ,langh gya apni sab hado ko ….
Baha diya lahu esi mein ye mile mujhe ye tere ko ……………2

Jangal ho gye khak ab chule ki rakh me , or  nhi chamkti chandni ab etni raat me ….
………... ……………………..Kyoki…………………………………….
Gaddhe jo kar diye ensan ne chand me,………………2
Ab jal nhi kuye ki gahrai me ,nadiyan bhi najar aati hai sukhi bahar me ,
Pahle jo aati thi sondhi sondhi mahak en hawaon me
Ab nazar nhi aati wo tajgi en hawaon me……………………2
Pahle jo khilte the phool bagh me
Ab khule aam bichte hai bazaar me
Pahle jo nadiyan pyas bujaya karti thi rahgiron ki
Ab wo ruki hai apne hi marg me
                                                                             TABHI TOH LAGTA HAI YARO MUJHE ESA ………..
Badal raha jamana badal raha janha sara
Ab kuch bhi karlo bhaiya nhi ghatne wala ye suraj ka para ……..
                                                                                                                     Poet :- Anurag Sharma
                                                                                                                                                                  Date :- 12/02/2010