Saturday 31 October 2015

जलवायु परिवर्तन "GROWING TREES SAVE US"

में विचलित हो उठता हूँ जब यह खबर प्राप्त होती है की “किसी किसान ने अपनी जमीन में हुए फसल के नुकसान के कारण आत्महत्या की “ कितना दुखद होता है यह सह जाना की हमारा एक अन्यदाता अब नही रहा पर इन सब से हठ कर जरा विचार कीजिये क्या कारण हुए होंगे सामान्य व्यव्हार में यह व्यक्तिगत परिस्थिति ज्ञात होगी पर एसा नही है यह हरित क्रांति के अंत का प्रारंभ है l
प्रतिवर्ष हो रहे निरारंतर परिवर्तन और उन परिवर्तनों में पिसती सरकार ये नुक्सान केवल किसान का नही सरकारे भी मुआवजा बांटते –बांटते अपने कोषालय को खाली करती जा रही है l
विकास के अन्य कार्यो में लगने वाली पूंची मुआवजे के रूप में खर्च की जा रही है l किसान पर हो रहे इस प्रभाव को कोइ भी सरकार नज़रन्दाज नही कर सकती आखिर देश की 70% वोट बैंक का सवाल है यही किसान सरकार बनाते है यही गिरा भी सकते है अत: कहा जा सकता है किसानो को होने वाले नुकसान की भरपाई करना सरकार की मजबूरी है l पर यह तोह बस ऊंट के मुह में जीरा है किसान को इस नुक्सान से कुछ के बारबार ही मुआवजा प्राप्त हो पता है l हमे मुआवजा बाँटने के आलावा कुछ आवश्यक जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है l हमे फसल चक्र को अपनाना होगा खेती के नविन संसाधनों को विकसित करने की आवश्यकता है l तकनिकी मार्गदर्शन को बढावा देना होगा हम एक कृषि प्रधान देश है हमारी अथेव्यवस्था खेती पर बहुत हद तक निर्भर है l हमे इसका Commercialize व्यावसायीकरण  करना और बड़े पूछीपतियों को इसमे निवेश करने की और पहल करना चाहिए l केवल वर्षा पर निर्भर रहने वाली फसल या खेतो तक जल की पूर्ति की आवश्यकता है एसी योजनाओ में लगने वाला पैसा शायद मुआवजे से कम होगा l जीहाँ ये फसल की चिंता एक व्यपक चिंतन है में चिंतित फसल के एक बार नष्ट हो जाने से नही बल्कि लगातार हो रहे नुकसान से चिंतित हूँ जिसका एक मात्र कारण मुझे नज़र आता है वह है जलवायु परिवर्तन climate change ये इन हादसों का सबसे बड़ा कारण है आज भारत ही नही समूचा विश्व इस समस्या को विश्व की अन्तरराष्टीय समस्या मान चूका है वैज्ञानिक हमे लगातार आगाह कर रहे है और इस समस्या ने अपने पैर पसारना भी शुरू कर दिये  जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा है। अगर कुछ वैज्ञानिकों  मानें तो यह ग्लोबल वॉर्मिंग एक प्रकृतिजन्य प्रक्रिया का हिस्सा है, जो एक निश्चित समय चक्र पर लगातार होती है।
इसके कारण पृथ्वी पर रहने वाली सभी प्रजातियों को लगातार परिवर्तनशील होना पड़ता है। प्राकृतिक रूप से होने वाली ये प्रक्रियाएँ प्रजातियों के क्रमिक विकास के लिए फायदेमंद होती है। 
हालाँकि यह सिद्धांत पूरी तरह मान्य नहीं है और देखा जाए तो मानव गतिविधियों के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों में तेजी से जलवायु परिवर्तन तेज हो गया है। अनेक पर्यावरणविदों वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हो रहा जलवायु परिवर्तन निकट भविष्य में कई प्रजातियों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण हो सकता है। और इसके कुछ उदाहरणों में जैसे
·         उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित कनाडा के बर्फीले मैदानों से ध्रुवीय भालू गायब होना
·         दक्षिण अमेरिका में समुद्री कछुएओ की वंशवृद्धि में गिरावट
·         चीन के विशाल पांडा का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है
·         जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की आवृत्ति में वृद्धि के साथ-साथ जंगल में आग (बुशफायर) का भी लगातार खतरा बना हुआ है।
·         भारत में विशेषज्ञों का अनुमान है कि बाघों के सबसे बड़े क्षेत्र सुंदरवन डेल्टा में लगातार मैंग्रोव के जंगल गायब होते जा रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव क्षेत्र को समुद्र के स्तर में वृद्धि का भयानक परिणाम अपनी गोद में पल रही कई अनमोल प्रजातियों की जान से चुकाना पड़ रहा है। 
वंही निरंतर इस तरह की खबरे और असर दिखने भी लगा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं और रेगिस्तान पसरते जा रहे हैं. कहीं असामान्य बारिश हो रही है तो कहीं असमय ओले पड़ रहे हैं. कहीं सूखा है तो कहीं नमी कम नहीं हो रही है कंही भूकंप तोह अन्य प्राकर्तिक आपदाओ की घटनाओ में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे मनिविये जीवन अभूत पूर्ण क्षति होती जा रही है हमारे वर्षाकाल और सर्दियों  के दिन में गिरावट आई है और तापमान में लगातार वृद्धि आज वर्ष के 365 दिनों में से औसतन 220 दिन तापमान गर्म बना रहता है प्रथ्वी का तापमान यंहा विश्व में औसतन 15 c तक आ पहुंचा वाही भारत में नुयुनतम 18 c से 25 c तापमान वर्ष वर रहता है वैज्ञानिक मतअनुसार जिस प्रकार हम कार्बन व् अप्रम्परागित उर्जा का उपयोग कर रहे है प्रति 100 वर्ष में 6 c तापमान की वृद्धि संभव है अत; इसप्रकार शायद यह सभ्यता कुछ 10 शाताव्धियो की ही मेहमान है l मानव प्रजाति के भी खतरे में आने की शुरुआत हो चुकी है। बेतहाशा आबादी और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन ग्लोबल वॉर्मिंग को तेज कर रहा है। प्रकृति की हर प्रजाति कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ी है, एक प्रजाति का सर्वनाश दूसरी प्रजाति पर आसन्न खतरे को अधिक विकट बनाता है। घटते संसाधनों और बढ़ती माँग ने इस समस्या को और भी जटिल बना दिया है, जिसे जल्दी सुलझाना पूरी पृथ्वी के हित में होगा। अन्यथा हम भी उन अन्य ग्रहों की श्रेणी में 10 शाताव्धि बाद गिने जायेंगे जन्हा जीवन की सम्भावनाये शून्य है हमारे लिए यह क्रमिक विकास की एक प्रक्रिया होगी हम एक तरह से कोइ सांफ सीडी का खेल खेल रहे है जैसे ही हम विकास (लक्ष्य) के नजदीक पहुंचेंगे हम फिर प्रारंभ पर बैठेंगे जीवन नष्ठ होगा पर सम्भावनाये नही l
हमे नविन उर्चा का सर्जन की आवश्यकता है अप्रम्पराह्गत उर्चा के संसाधन हमे ही निगलते जा रहे है प्रराम्परागत उर्चा का उत्सजन हमारी अवश्यक ही नही मजबूरी है सौर्य उर्चा –पवन उर्चा –बोइगेस जैसे संसाधनों में सम्भानाये तलाशना होगीं हमे CC  COUL & CORBEN का उपयोग नुन्य्तम करना होगा नही तोह यह हमारी CC (कम्पलीशन सर्टिफिकेट ) जारी कर देंगे C&C जितना कम होगा तापमान में संतुलन उतना बेहतर होगा l वातावरण मनविये क्रिया कलापों के कारण  कार्बन का प्रतिशत बड़ा है जिसको संतुलित करने का एक मात्र मंत्र है वृक्षारोपण जी हाँ केवल वृक्ष ही एक मात्र वह शिव है जो इस जहर को अवशोषित कर सकते है और अमृत रूप (ओक्स्सिज़न)में बदल सकते है l मेरा मत है विश्व की 7 अरव जनसँख्या मिल कर प्रतिवर्ष अपने जन्म दिवस पर  1 वृक्ष लगाती है तोह यह परंपरा हमे बहुत आगे तक लेकर जाएगी एसा करने वाले कुछ राज्य और देशो की में सराहना करता हूँ पर इस कैम्पेन को “GROWING TREES SAVE US “ के नाम से शुरू करना चाहिये हमे प्रत्येक शासकीय परिसर –आवासीय भवन –पार्क बंजर भूमि –पहाड़ व् नदी नालो का उपयोग इसी कैम्पिंन के लिए करना चाहिये l
नोट :-आप अपना मत और सुचाव मुझे मेल कर सकते है 
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